Monday, October 24, 2011

कीर आदिवासी समाज द्वारा दीपावली पर्व पर पितरों को तर्पण किया जाता है।

(राजेंद्र कश्यप,दीपक शर्मा द्वारा)


दीपावली पर्व सारे देश में विभिन्न मान्यताओं के साथ मनाया जाता है। कीर आदिवासी राजस्थान, गुजरात ,उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश में बहुलता से निवासी करते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन प्रात:काल से समाज के स्त्री ,पुरूष और बच्चे निवास के पास के नदी या तालाब के पास पहुंच कर स्नान कर नए रंगबिरंगे वस्त्र पहनते हैं,और उपवास रख़ते हुए नदी के किनारे ही शु़द्धतापूर्वक भोजन बनाकर सूर्य अस्त होने के पूर्व ही अपने पितरों को जल धूप नारियल प्रसाद अग्नि में अर्पित करते हैं। कीर आदिवासियों की मान्यता है कि केवल इस दिन ही हमारे पूर्वजों की आत्माएं पृथ्वी पर आकर होम ग्रहण करती है। शाम होने पर नदी किनारे और अपने घरों पर श्रद्धापूर्वक दिए जलाते है। जिसकी रोशनी देख पितरों की पवित्र आत्माएं पृथ्वी पर आकर उस होम को ग्रहण कर लें। पितरों के होम के पूर्व गोरा और महादेव की पूजा अर्चना कर गीत गाए जाते हैं।

कीर समाज की मुख्य भूमि राजस्थान है वहीं से मुगलों कर लड़ते -लड़ते उत्तर प्रदेश,राजस्थान गुजरात और मध्यप्रदेश की नदियों और तालाब के किनारे बसते गए। मध्य प्रदेश में भूपाल राज्य में मुख्यत: निवास करते रहे हैं। पूर्व राष्ट्रपति डा0 शंकर दयाल शर्मा ने भोजपुर मिंदर के पास कीर समाज के निवासियों के टीले के बीच एक स्तंभ का शिलान्यास वषाzें पूर्व किया था। कीर समाज के बुजुर्गों की मान्यता है कि शिवशक्ति का केंद्र भोजपुर मंदिर की रक्षा करने के लिए हजारों वषोzं से हम इसके पास के गांवों में रहते रहे हैं। हमेशा भोजपुूर की रक्षा करते रहेंगे।

कीर समाज के लोग किसी भी प्रदेश में रहे उनकी भाषा में आज भी राजस्थानी पुट रहता है। स्त्रियों की वेशभूषा राजस्थानी रहती है। कार्तिक अमावस्या को पितरों को होम देकर संकल्प करते हैं कि प्रत्येक परिस्थितियों में अपना गांव नदी तालाब के किनारे की जलीय खेती, तरबूज,खरबूज,सिंघाड़ा आदि सब्जियों का उत्पादन बढ़ाकर अपने व्यवस्था की रक्षा और समृद्धि करते हुए शिव मंदिरों की रक्षा करते रहेंगे।

इस अवसर पर कुल देवताओं और पितरों की मनौती पूरी करना और घर परिवार के साथ गांव क्षेत्र की खुशहाली तथा समृद्धि की तमन्ना के साथ ही अपने पशुओं की रक्षा की प्राथना होती है। अपनी अनूठी परंपरानुसार दीपावली पर्व पितरों के होम तर्पण के रूप में पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस दिन सांडनी की पूजा विशेष रूप से की जाती है, जिस पर बैठकर ही कीर समाज का दूल्हा बारात लेकर जाता है। कई वषोzं पूर्व भोजपुर के पास कीर नगर नामक गांव इसी आदिवासी समाज द्वारा बसाया गया है।
www.eklavyashakti@gmail.com

Sunday, June 26, 2011

Sunday, May 29, 2011

Tuesday, May 24, 2011

क्या राम सीता ने की थी आत्महत्या

क्या राम सीता ने की थी आत्महत्या
लेखकः-राजेन्द्र कश्यप
(देश की प्रतिष्ठित वेब साइट ‘‘प्रतिवाद डाट काम’’ पर राम सीता ने की थी आत्महत्या नाम वीडियो पूरे देश व विदेश में देखा जा रहा है, जिसमें मुख्य वक्ता रमेश शर्मा जो राष्ट्रीय एकता परिषद मध्यप्रदेश के उपाध्यक्ष भी हैं।)
भोपाल। ‘‘जीवन का यथार्थ और भविष्यवाणियों का औचित्य’’ विषय पर आयोजित जनसंवेदना संस्था द्वारा संगोष्ठी मे रमेश शर्मा मुख्य वक्ता ने अपने वक्तव्य में हिन्दुओं के धार्मिक ग्रन्थ रामायण के मुख्य चरित्र भगवान श्री रामचन्द्र जी, उनकी धर्मपत्नी सीताजी एवं आयोध्या के राजा दशरथ की नयी व्याख्या में आत्महत्या करने वाला निरूपित किया है।
अपने पूर्व उद्बोधन में रामचरित्र मानस का शहरों में रामभक्तों द्वारा कराये जाने 24 घन्टे का अखण्ड पाठ की कड़ी आलोचना करते हुए कहते हैं कि यह उचित नहीं है इससे पड़ोसियों को कष्ट पहुंचता है और वह रामायण का पाठ करने वालों को गालियां देते हैं। यह उचित नहीं है। भारत में ग्रामीण जन आपस में मिलने पर ‘जय राम जी ’ करते हैं। अपरिचित व्यक्ति से भी बात करते समय जय रामजी करने में संकोच नहीं करते बल्कि मृत्योपरान्त भी राम नाम का उच्चारण करते हैं।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी अपने प्राण त्यागते समय राम नाम का उच्चारण किया था। हिन्दू धर्म के मार्गदर्शक जगत गुरू शंकराचार्य साधु संतजन भी रामन नाम का जोर से उच्चारण को जोर देते हैं। अशिक्षित ग्रामीण जन स्वयं रामचरित्र का पाठ नहीं कर पाते हैं, इसलिये गावों में लाउड स्पीकर की आवाज दूर खेत, खलिहान तक पहुंच जाती है।
‘‘राम नाम की महिमा अपरंपार है’’। राम नाम पर देश में एक बार सत्ता परिवर्तन हो चूका है। ऐसे में मध्यप्रदेश में भाजपा पार्टी की सरकार है जिस पार्टी ने रामजन्म भूमि में राम मन्दिर निर्माण हेतु कृत संकल्पित है, उसी पार्टी के शासन काल में एक राज्य मंत्री का दर्जा प्राप्त श्री रमेश शर्मा अपने वक्तव्य में कहते हैं कि महाराजा दशरथ असंतुलित होकर एकस्ट्रीम में जाकर चलते फिरते दो वचन दे डालेओर अपने दो पुत्रों को वन में भटकना पड़ा। सीता को भी वनवास भुगतना पड़ा। वक्तव्य में कहा कि राम ने भी सरयू नदी में प्राण त्याग दिये यह भी आत्महत्या है।
एक धोबी के कहने पर एकस्ट्रीम में आकर राम ने अपनी पत्नी को वनवास दे दिया और उनके दो पुत्र (लव,कुश) को जीवन यापन के लिये शहरों में गाना गाकर रहना पड़ा। कुशल वक्ता शब्दजाल के प्रवीण रचयिता है। परन्तु स्पष्टतः अयोध्या राजा दशरथ एवं उनके पुत्र भगवान राम ने अत्महत्या की थी यह व्याख्या धर्म प्रेमी स्वीकार नहीं कर पायेंगे। रमेश शर्मा ने स्पष्ट कहा कि ये आत्महत्या हैं। हिन्दू धर्मानुसार आत्महत्या पाप होती है। राजा दशरथ ने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिये थे। सीता धरती पुत्री थीं और वह स्वयं धरती में समा गई थीं। इसी तरह राम ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि प्राणों को ब्रह्माण्ड में चढ़ाकर प्राण त्याग दिये थे। रामचंद्र जी का जीवन संतुलित था। मर्यादा पुरूषोत्तम राम थे। उन्होंने पूरा जीवन मर्यादा में रहकर लोकतांत्रिक जनहितकारी क्रिया कलाप से युक्त जीवन व्यतीत किया।
चिन्तक विचारक रमेश शर्मा ने रामायण ओर भगवान राम की नई व्याख्या की है जो भारत के चिन्तकों की व्याख्या के बीच विरोधाभास लेकर एक आस्थाहीन संदर्भ लेकर आई है, जो भगवानराम को एक मानव रूप में कायर व्यक्तिकी भांति प्रस्तुत करने की कोशिश की है।
क्या अयोध्या के राजा दशरथ, उनके पुत्र भगवान रामचन्द्र जी ने आत्महत्या की थी और सीता जी भी ने भी आत्महत्या करके प्राण त्याग दिये थे। यह प्रश्न हिन्दुओं आस्थओं को चोट पहुंचाता है। क्या ऐसी सरकार को मध्यप्रदेश में शासन करने की अधिकारी है जिनका एक सहयोगी रामचन्द्र जी को आत्महत्या करने वाला मानता है। और क्या मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान एवं शिक्षा एवं संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मी कांत शर्मा जी रामायण की इसी व्याख्या से सहमत हैं।
प्रदेश ही नहीं देश भर के रामभक्तों की आस्थ को ठेस पहुंचाने के प्रयास आगे भी राजी रहेंगे। क्या मध्य प्रदेश सरकार श्री शिवराज सिंह चौहान का समर्थन ऐसी संस्थाओं और व्यक्तियों को मिलता रहेगा।eklavyashakti.com Mob-9753041701